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Mera Bachpan

मेरा बचपन बीत गया, जीवन की इस डोर से,

कितना सुंन्दर और स्वच्छ था, बचपन की इस छोर से !

चेहरे सबके खिले हुए थे, न जाने किस प्रसन्नता से,

मन में असीम ख़ुशी थी, दूर पड़ी थी चिंताएँ !

जीवन की इस छोर से देखें, कोमल राहें थी डगर में,

नन्हें नन्हें कदम पड़े, हर पथ पर हर बोल पर !

कितनी मन की आजादी थी, छलक रही थी हर भाव में,

कितने सुंदर ओर सरल थे, वोः बचपन के प्यारे दिन !

भेदभाव का भाव नहीं था, ऊँच नीच की सोच नहीं थी,

हर पल हर साथी था अपना, खेल थे मन को लुभाते !

रूठे को हर पल मनाते, हर दम संग संग रहते,

सहारा बनते हर पल किसी का, बचपन में भी बड़े बन जाते !


ऐसा द्रश्य दिखता मेरे मन से, अभी भी बचपन वापस आता,

मेरा बचपन बीत गया, जीवन की इस ढोर से.

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